दिन और रात

दिन ढलने में अभी वक्त बाकी है
क्यों न अतीत से खुद को तड़पाया जाए

चुभ जाते हैं जिनसे बदन में कांटे
भूली-बिसरी उन यादों को निभाया जाए

ग़म की महक में है वो सादगी
अब जिंदगी भर अकेले जिससे मुस्कुराया जाए

काश एक ख्वाब में आए वो दोबारा
तवज्जो जिनसे अपना शोक फरमाया जाए

भीड़ में निकल पड़ें शायद चौथे पहर हम
अजनबियों से उसका वो मासूम चेहरा मिलाया जाए

यादों से जो आंसू उमड़ेंगे दिल में
तन्हा रात में उन आंसुओं को बहाया जाए

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