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ज़माने
जिंदगी नही मिली पर जिंदा हूं मैं आसमान का टूटा हुआ परिंदा हूं मैं लोग पीते रहे खुशनुमा महफिलों में महफिलों से भी तो शर्मिंदा हूं मैं। इस कदर पत्ते शाखों से टूट जाते थे जैसे सिर्फ फूलों की खुशबुओं का इंतजार हो कफन भी ना भीग पाए अश्कों से जहां ऐसे बेदर्द ज़माने का…
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अहिल्या
इस धरा की बात है खासखुद भगवान उतरे यहां सबके साथ।जब कभी अंधकार घिर आता है,मानव नीचे गिरता जाता है,भूमि से हरि को ही पुकारता है,अधर्म से मुक्ति को अकुलाता है। त्रेता में जब यह नाद हुआ,पाप से सत्कर्म जब बर्बाद हुआभीक्षण आंधी उड़ती आती थी,सात्विकता नष्ट कर ले जाती थी। ऋषियों का जीना दूभर…