जिंदगी नही मिली पर जिंदा हूं मैं
आसमान का टूटा हुआ परिंदा हूं मैं
लोग पीते रहे खुशनुमा महफिलों में
महफिलों से भी तो शर्मिंदा हूं मैं।
इस कदर पत्ते शाखों से टूट जाते थे
जैसे सिर्फ फूलों की खुशबुओं का इंतजार हो
कफन भी ना भीग पाए अश्कों से जहां
ऐसे बेदर्द ज़माने का बंदा हूं मैं।