ख़याल

बात तो अब बहुत पुरानी है

इक खोए हुए वक्त की रवानी है

बहता था वो शख़्स हर उस हवा की साथ

पहुँचाती जो भी उसकी फ़रियाद दूआओं के साथ

के बस परिन्दों-से ख़याल मिलें ख़ाली आसमानों में उड़ते उड़ते

वरना रख़ा ही क्या है ज़मीन की मोहब्बतों के साथ।

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